October 27, 2021

कवि की मनोहर कहानियाँ – यशवंत व्यास

 


किताब – कवि की मनोहर कहानियाँ
लेखक – यशवंत व्यास
प्रकाशक – खटाक (2021)
विधा - हास्य व्यंग्य
आईएसबीएन -  9781637455661
पृष्ठ - 121

यशवंत व्यास ने अपनी किताब कवि की मनोहर कहानियों के ज़रिए वर्तमान समय में कवियों के अस्तित्व का जैसे एक्स-रे खींचने की कोशिश की हो। वास्तविकता को हास्य-व्यंग्य के माध्यम से कहना सिर्फ भाषाई जादू नहीं होता। ये व्यंग्य लेख हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में मौजूद कई जटिल सवालों को सहजता से हल करते हैं। कुल पचास लेखों में सिमटी ये किताब सिर्फ शब्दों की तिकड़म नहीं, हमारे समय पर की गई टिप्पणी है। कवि के जीवन में दिन-रात चलती एक उथल-पुथल से इस किताब की शुरुआत होती है –

 

कवि कहता है, नाव बनाना मामूली काम है।
वह ऐसे मामूली काम क्यूँ करे?
वह महान काम के लिए पैदा हुआ है।
नाव तो किसी ऐरे-गैरे से बनवा लो
जो लकड़ी ठोंकना जानता हो
कवि तो कविता ठोंकता है।

इन लेखों में गंभीर मसलों को व्यंग्य की धार पर रखकर कई दृश्य विवरण उकेरे गए हैं। कवि सिर्फ कवि होना चाहता है जबकि वो जिस समाज में रहता है उसकी जटिलताओं से अछूता रहना नामुमकिन है। उसकी निगाह हर स्तर को भेदती है। चाहे वो मानवीय संबंध हों या हमारे इर्द-गिर्द फैली विसंगतियाँ। एक कवि जिंदगी चलाने के लिए की जाने वाली जद्दोजहद से भी जूझता नज़र आता है।   

कवि का बॉस बादल गया लेख में यशवंत व्यास कहते हैं ̶ भौतिक दृष्टि से जहां उसकी नौकरी है, वहाँ उसका बॉस भी है। दार्शनिक दृष्टि से कवि तो कभी नौकरी करता नहीं, बस ये व्यव्स्था का संताप है जिसे वो सह रहा है

इसके अलावा कवि के पिता स्वर्गवासी हुए, नौ सौ लाईक्स मिले’, कवि को भूख लगती है पूर्वजों की जंग खाई दुनाली और जब कवि ने हेयर कटिंग सैलून खोला जैसे शीर्षक गुदगुदाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ कवि स्टार्ट-अप में लगा के जरिए एक तरह से लेखन में पे-स्केल पर चोट की जाती है ̶ एक कविता पर एक चाय फ्री। दो कविता पर दो चाय और मठरी भी फ्री

जब कवि महोदय इन स्टार्ट-अप से बेज़ार होकर डकैती में उतरते हैं तो उन्हें आभास होता है कि मिड डे मील, ये इतिहास की सबसे बड़ी डकैती थी 

यशवंत व्यास ने साहित्य-आलोचकों को भी अपने लालित्य में यथा-संभव सम्मान दिया, वो कहते हैं कवि एक दिन बोर हो गया, उसने बोरियत को बोरे में भरा और आलोचक के घर के बाहर रख आया। आलोचक से बड़ा कौन? उसके घर तो बोरियत के बोरे ही बोरे।

 


यहाँ इसी किताब से दो व्यंग्य लेखों के अंश साझा कर रही हूँ –

कवि एक बार अफवाह के धंधे में उतरा: कविताई, अफवाह से ज़्यादा सुरक्षित है, कविता में वो देह हो या समाज – कहीं भी घुस जाता है और सुरक्षित निकल आता है।

कवि मनाली गया: पहाड़ों पर उसे प्रेम इसलिए आता है कि वहाँ ऊंचाई होती है और अकेलापन होता है। शिखर के अकेलेपन में भय और शांति दोनों होते हैं। कवि इसपर ग्रंथ लिखना चाहता है। ज़ाहिर है ग्रंथ आएगा तो भीड़ होगी, भीड़ होगी तो माहौल बनेगा और माहौल भी भय के साथ भरोसा देता है। कवि भय पैदा करना चाहता है, बदले में भरोसा लेना चाहता है। भरोसे का सौदा एजेंडे पर है।

यशवंत व्यास अपनी किताब के आख़िर में कवि के आत्म-साक्षात्कार से भी गुजरते हैं, जिसकी स्मृतियाँ पवित्रीकरण के बाद अपने स्नानघर में दर्ज की थी। किताब की समाप्ति फटी डायरी के साबुत पन्ने से होती है।

मेरा व्यंग्य-कृतियों से अब तक इतना मेल-मिलाप हुआ नहीं है, अगर याद करूँ तो राग-दरबारी और निठल्ले की डायरी’, यही कुल दो किताबें पढ़ीं हैं। अगर आप इस विधा में रुचि रखते हैं, और व्यंग्य लेखों को पढ़ना पसंद करते हैं तो ये किताब इस ज़मीन पर नए रास्ते खोलेगी।  


P.S. Thank you Pavan Da for this gifted copy.