April 01, 2021

अनुकृति उपाध्याय का उपन्यास 'नीना आंटी': जिजीविषा से भरा किरदार

 


आप एक लेखक की पहली किताब पढ़ते हैं, ज़िंदगी को लेकर उनका नज़रिया आपको अचर में डालता है, भीतर एक इच्छा जन्म लेती है, उस लेखक का लिखा हुआ सारा कुछ एक प्रवाह में पढ़ जाने की, अनुकृति उपाध्याय मेरे लिए वहीं लेखक हैं। उपाध्याय का लेखन नीम वाले आँगन में गमकती दोपहरी सा है, जो सोच के नित नए द्वार खोलता है। मैं जाने कितनी बार उनके लिखे के बीच लौट-लौट जाती हूँ, उनकी किताबें उतनी ही सहृदयता से मुझे अपनाती हैं, मन के भटकाव को जैसे कोई नर्म हथेलियों में थाम भर ले।

इन दिनों राजपल एंड संस से प्रकाशित अनुकृति उपाध्याय का नया उपन्यास, नीना आंटी पढ़ा। नीना जैसा किरदार गढ़ना ही, पुरुषसत्ता के ढांचे को ध्वस्त कर, स्त्री के अस्तित्व के लिए नई संभावनाएं तलाशना है। ये उपन्यास एक लड़की के हिस्से का सच कहता है, सीधा-सपाट सच।

उपन्यास के कथा केंद्र में है नीना, जो किसी दूसरे के गीत में बिंधा महज़ कोरस नहीं बल्कि अपने में सम्पूर्ण सिंफनी है, हर औरत का इतिहास नहीं होता, सिर्फ समझौतों से भरी सकरी गलियाँ होती हैं। नीना का इतिहास था, विद्रोहों और उद्धत्ता, प्रेम और आवेगों से रंगीन इतिहास।

उसने कभी बनी-बनाई लीक पर चलना सीखा ही नहीं, वो मानती है कि मन का करने से पहले मन को जान लेना जरूरी है। बाहरी दुनिया के लिए वो दिखावटी मुखौटा नहीं पहनती, जो भी अनुभव हैं गहरे और बेधड़क जिये हुए, चाहे वो सुंदरता हो या कोई चोट, यह हर स्पर्श को सीधे आत्मा पर महसूस करने जैसा है।

नीना के भीतर मुस्कुराहटों की गुप्त गंगा है, खुले दिल वाली मुस्कुराहट, मन मसोसकर जीना उसने सीखा ही नहीं, अपनी परेशानियों से खुद निपट लेती है, दुख पहुंचता है तो भी ज़ाहिर नहीं करती, कर भी देती तो क्या कोई उसका पक्ष समझ पाता? शिकायत नहीं करती लेकिन बेबाक है, ऐसी उन्मुक्त पाखी रूह को मठाधीशों का रौब भला कहाँ बांध पाएगा? उसे किसी ऐसे शख्स की ज़रूरत नहीं जो उसके लिए दुनिया से लड़े, “सबके बीच अंतराल खोज एकाकी, दल में अलग थलग चुगती गौरैया, एकल, व्यस्त, अपने में पर्याप्त



एक विशाल परिवार का हिस्सा थी नीना, लेकिन किसी ने उसे मौसी या बुआ नहीं नीना आंटी कहकर ही पुकारा, कोई और संबोधन उसके व्यक्तित्व पर जंचता भी कैसे? परिवार के युवा दल के बीच खासी लोकप्रिय रही, सभी उसके पास कभी ना कभी आए, जीवन की उलझन, थका मन, दुखता अहम, कुढ़न, कुंठा लेकर। नीना दार्शनिक स्तर पर जिंदगी को देखती हैं, “जब भी कुछ सुलझाना हो तो धागों को खींचना नहीं चाहिए, हल्के हाथों अलगाना चाहिए।”

अनुकृति उपाध्याय ने नीना आंटी उपन्यास, एक युवा किरदार, सुदीपा के नजरिए से लिखा है, सुदीपा ही इस कथा की नरेटर है, जो इस वक्त बेचैनियों की पोटली बांध नीना आंटी के पास पहाड़ चली आई है। अभी तक जिन्हें अफवाहों में सुना, यहाँ पहाड़ पर पहुँचकर वो उनकी जिंदगी को करीब से महसूसती है, उन्हें बागवानी करते, फूलों से इत्र तैयार करते देखती है। सोचती है कि इस हवेलीनुमा मकान में अकेले रहने को लेकर नीना आंटी का पूरा परिवार क्यूँ उनके खिलाफ है?

किसी एक के भूल जाने या नकारने से तुम्हारी याद झूठी नहीं पड़ जाती, अक्सर हमारी स्मृतियाँ एक दूसरे से मेल नहीं खातीं, जो जैसा तुम्हें याद रहता है, वो वैसा ही दूसरे को नहीं

सुदीपा खंगाल रही है नीना आंटी का स्याह अतीत, नीना ने प्रेम किया कई दफ़े किया, फिर शादी क्यूँ नहीं की? जैसा सब कहते आए हैं क्या सचमुच नीना आंटी एक बुरे चरित्र की औरत थीं? किस्सों में किस्से खुलते हैं, स्मृतियाँ आकार लेती हैं, सोच के स्तर पर कई सवाल खड़े होते हैं।  

इस तरह नीना के बहाने, तीन पीढ़ी की औरतों का सच सामने आता है, नीना की माँ जिनमें इतनी हिम्मत नहीं कि अपनी सोच और फैसले की डोर खुद थाम सके, अपनी बेटी के सही को सही कह सके। अपने आखिरी समय में माँ और नीना के बीच घटे वो कुछ पल, वही सच्चे थे बाकी सारी जिंदगी झूठ? किताब के आखिरी कुछ पृष्ठ आपको सोचने पर मजबूर करते हैं।


समाज की लादी मान्यताओं को ढोती अकेली माँ ही नहीं, नीना की बहनें भी थी। अनुकृति उपाध्याय ने कैसे इन पात्रों के बीच नीना का जिजीविषा से भरा व्यक्तित्व रचा है। वो कहानी का एक सिरा वर्तमान से उठाती हैं और अतीत से जोड़ देती हैं, ये उतार-चढ़ाव सहजता से चलता है। उपाध्याय के उपन्यासों में प्रकृति का विवरण अवश्य होता है, जो उनके पात्रों के चरित्र को निखारता है।

एक बार जाने हुए से फिर अंजान नहीं हुआ जा सकता, जाना हुआ ऐसा जिन्न है जो फिर से बोतल में बंद नहीं किया जा सकता

जिसने उपाध्याय को पहले पढ़ा है वो इनके भाषा शिल्प का प्रसशंक रहा होगा, रंगों में डूबे, सांस लेते बिम्ब, जीवंतता से भरी छवियां, यह प्रकृति को शब्दों के कैनवास पर शिद्दत से जीने जैसा है। शब्द-शिल्प और किस्सागोई में गहरी पकड़ एक अच्छे लेखक होने की पहली शर्त हैं।

नीना आंटी स्त्री चेतना को आधार बनाकर लिखा गया है, जो अपने मुख्य किरदार के बहुआयामी अनुभवों और संवेदनाओं के जरिए सीधे पाठक से संवाद करता है। इसे लघु उपन्यास क्यूँ कहा गया, जबकि ये अपने आप में सम्पूर्ण है, इसे 112 पृष्ठों में ही सिमट जाना था, सिमट गया। उम्मीद कभी लघु-वृहद नहीं होती, अनुकृति उपाध्याय की किताब नीना आंटी सूखते जंगल के बीच वही हरियाती उम्मीद है। हर पाठक वर्ग के लिए एक जरूरी किताब।    



लेखक के बारे में 

अनेक वर्षों तक हाँगकाँग में बैंकिंग और निवेश के सैक्टर में कार्यरत रहने के बाद अनुकृति उपाध्याय ने अपने कहानी संग्रह ‘जापानीसराय’ के जरिए साहित्य-जगत में प्रवेश किया था। द्विभाषी लेखक हैं, वह लिखती हैं इस आशा में कि इस रचनात्मक जोड़ने-तोड़ने में वह कुछ अनाम ढूँढा जा सके जो शायद है भी या नहीं भी। 'नीना आंटी' हिन्दी में उनका पहला उपन्यास है'।  

लिंक: नीना आंटी ऑनलाइन खरीदी जा सकती है। 

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