कुमाऊँ की पहाड़ियों का जिक्र आते ही मन में
शिवानी का नाम गूंजने लगता है, जैसे ये दोनों एक दूसरे के पूरक हों। गौरापांत शिवानी उत्तराखंड की
लेखिका के तौर पर हिन्दी साहित्य में अपना अलग मुकाम रखती हैं, उनका लिखा पाठक को सम्मोहन में बांधता है, उनके
नारी पात्र विस्मित कर जाते हैं, सहज और पारदर्शी भाषा, जैसे आकाश में बहते उजले बादल, पात्रों के अन्तर्मन
की उड़ान जैसे धवल सारस।
उनके लिखे से मेरा परिचय उपहार स्वरूप मिली किताब
“चल खुसरो घर आपने” से
हुआ, साधारण परिवेश में पले-बढ़े पात्रों के बावजूद उनका संसार
व्यापक है, हर पात्र एक यात्रा पर होता है, यात्रा जो मन के अंदर चलती है, भावुक और संवेदनशील
होने के साथ उनके नारीपात्र स्वाभिमानी होते हैं, अपने जीवन
मूल्यों को तजरीह देते हुए वो संघर्ष से कतराते नहीं, आजाद
खयाल और अपनी जड़ों से जुड़ाव को शिवानी जी ने अपने पात्रों के जरिए क्या खूब उकेरा
है, वो चेहरे के भावों का भी इतना सजीव चित्रण करती हैं
जितना आस पास के वातावरण का, जैसे मधुबनी पेंटिग्स का कलाकार
बारीक काम करता है उसी तरह छोटी छोटी डिटैल पढ़कर लगता है जैसे ये सिर्फ कहानियाँ
नहीं, जीती जागती दुनिया हो, जो हमारे
अस्तित्व से परे भले है लेकिन कहीं न कहीं अपना वजूद रखती है, यही भरोसा शिवानी जी के लेखन को असीम ऊंचाई पर खड़ा करता है, आम बोली की मिठास लिए उनके पात्र मन में घर कर जाते हैं, किस्सागोई में पारंगत शिवानी जी की दो दर्जन भर किताबों में से मुझे ‘चल खुसरो घर आपने, मायापुरी,
चौदह फेरे और अतिथि’ पढ़ने का अवसर मिला, कृष्णकली और बाकी उपन्यासों को भविष्य में जरूर पढ़ना चाहूंगी। यहाँ हाल ही
में पढे दो उपन्यासों का जिक्र कर रही हूँ, जो मुझे बेहद पसंद
आए।
चौदह फेरे
“ऐसी ही भारत की रहस्यमयी रोप ट्रिक-सी है तुम्हारी सखी अहल्या । उसके
स्वभाव का कौन-सा भाग सत्य है और कौन मिथ्या, यह मेरे लिए एक अबूझ पहेली ही रही है। । कभी वह
अनोखी आत्मीयता से निकट खिंच आती है और दूसरे ही क्षण कटी पतंग की तरह हवा में दूर
उड़ जाती है”
शिवानी जी को ख्याति इसी उपन्यास से मिली, चौदह फेरे एपिसोड्स के रूप में
सबसे पहले धर्मयुग पत्रिका में छपना शुरू हुआ था, किताब का
शीर्षक पाठक के मन में जिज्ञासा पैदा करता है जिसका मर्म किताब के आखिर में पता
चलता है, ‘चौदह फेरे’ की मुख्य पात्र अहिल्या का जन्म अलमोड़े में होता है लेकिन परिस्थितियों
के चलते उसके पिता उसे बोर्डिंग स्कूल, ऊंटी भेज देते है।
माँ से बचपन में ही अलग हो जाने वाली अहिल्या
अपने पिता की एक महिला दोस्त, मल्लिका की संगत में रहकर बड़ी होती है, मॉडर्न परिवेश
में पाली अहिल्या का रिश्ता उसके पिता अपने ही समाज में करना चाहते हैं, वो बिटिया को किसी बेशकीमती हीरे सा छुपाए, अपने
कुमाऊँ अंचल में लौटते हैं, वहीं से अहिल्या की जिंदगी में
नया मोड़ आता है, नए पात्रों का जिंदगी में आना, अनछुए एहसासों का मन में जगह बनाना, हिमालय जाकर एक
आश्रम में वासित अपनी माँ से मिलना, प्यार के कहे-अनकहे के
बीच अपने मन को समझाना, प्यार में पड़े दिल की उलझनें, और उन्हे सुलझाने की कोशिश, शिवानी जी ने अल्हड़
खूबसूरती से रचा है ये उपन्यास “चौदह फेरे”
अतिथि
शिवानी जी के उपन्यास ‘अतिथि’ का कथानक शुरुवात में किसी बॉलीवुड मूवी का भ्रम देता है लेकिन धीरे धीरे
इसकी प्याजी परतें खुलती है और पाठक का मन ऊन के गोले सा पात्रों के साथ बंधता चला
जाता है, इस उपन्यास की मुख्य पात्र जया सरल और स्वाभिमानी
लड़की है, सरकारी मास्टर की बेटी आत्म-सम्मान को सर्वोपरि मानती
है।
जया के कॉलेज में हुए एक
जलसे के दौरान, प्रदेश के मंत्री माधव बाबू जो की जया के पिता के बचपन के साथी भी थे, जया को देखते है और मन ही मन उसे अपने बेटे कार्तिक के लिए पसंद कर लेते
हैं, माधव बाबू के घर में एक गरीब घर की बेटी लाने के उनके
विचार पर शीत युद्ध सा छिड़ जाता है, माधव जी बिना किसी की
परवाह किए, बिना बाह्य आडंबर के जया को शादी कर अपने घर ले
आते हैं, जया के परिवार वाले शुरू में इस रिश्ते को पसंद
नहीं करते, कार्तिक के चरित्र को लेकर जो अपवाहें फैली हैं उससे
उनका मन संशय से भरा रहता है, लेकिन माधव जी के यकीन दिलाने
और कार्तिक का बार बार जया से मिलने की कोशिशें, इस रिश्ते
को एक जमीन दे देतीं है, माधव बाबू के घर के सदस्यों की
रजामंदी न होने पर जया को कैसे अपने ससुराल में नीचा देखना पड़ता है कैसे वो
स्वाभिमानी लड़की अपने वजूद के टुकड़े समेटे आगे की जिंदगी की राह खुद तलाशती है, कैसे माधव जी को जानते बूझते की गई अपनी गलती का पश्चाताप होता है। उपन्यास
का हर एक पात्र जीवंत हर एक एहसास जिया हुआ महसूस होता है,
शिवानी की दुनिया जितनी स्वाभाविक है उतनी ही संघर्षों से भरी, यहाँ दुख है और अकेलापन भी, इसके बावजूद कोई भी
पात्र बेबस लाचार नहीं है, अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर
जीना जानता है, जहां संस्कारों को मानता है, वहीं बेबुनियाद रूढ़ियों को तोड़ता भी है।
राजनैतिक कलह, पारिवारिक
मनमुटाव और दो विपरीत विचारधारा वालें लोगों का मेल, इनही
ताने-बानो के बीच बुना है शिवानी का ये उपन्यास “अतिथि”