December 05, 2019

शिवानी के दो उपन्यास: चौदह फेरे और अतिथि




कुमाऊँ की पहाड़ियों का जिक्र आते ही मन में शिवानी का नाम गूंजने लगता है, जैसे ये दोनों एक दूसरे के पूरक हों। गौरापांत शिवानी उत्तराखंड की लेखिका के तौर पर हिन्दी साहित्य में अपना अलग मुकाम रखती हैं, उनका लिखा पाठक को सम्मोहन में बांधता है, उनके नारी पात्र विस्मित कर जाते हैं, सहज और पारदर्शी भाषा, जैसे आकाश में बहते उजले बादल, पात्रों के अन्तर्मन की उड़ान जैसे धवल सारस।

उनके लिखे से मेरा परिचय उपहार स्वरूप मिली किताब “चल खुसरो घर आपने से हुआ, साधारण परिवेश में पले-बढ़े पात्रों के बावजूद उनका संसार व्यापक है, हर पात्र एक यात्रा पर होता है, यात्रा जो मन के अंदर चलती है, भावुक और संवेदनशील होने के साथ उनके नारीपात्र स्वाभिमानी होते हैं, अपने जीवन मूल्यों को तजरीह देते हुए वो संघर्ष से कतराते नहीं, आजाद खयाल और अपनी जड़ों से जुड़ाव को शिवानी जी ने अपने पात्रों के जरिए क्या खूब उकेरा है, वो चेहरे के भावों का भी इतना सजीव चित्रण करती हैं जितना आस पास के वातावरण का, जैसे मधुबनी पेंटिग्स का कलाकार बारीक काम करता है उसी तरह छोटी छोटी डिटैल पढ़कर लगता है जैसे ये सिर्फ कहानियाँ नहीं, जीती जागती दुनिया हो, जो हमारे अस्तित्व से परे भले है लेकिन कहीं न कहीं अपना वजूद रखती है, यही भरोसा शिवानी जी के लेखन को असीम ऊंचाई पर खड़ा करता है, आम बोली की मिठास लिए उनके पात्र मन में घर कर जाते हैं, किस्सागोई में पारंगत शिवानी जी की दो दर्जन भर किताबों में से मुझे चल खुसरो घर आपने, मायापुरी, चौदह फेरे और अतिथि पढ़ने का अवसर मिला, कृष्णकली और बाकी उपन्यासों को भविष्य में जरूर पढ़ना चाहूंगी। यहाँ हाल ही में पढे दो उपन्यासों का जिक्र कर रही हूँ, जो मुझे बेहद पसंद आए।

चौदह फेरे



“ऐसी ही भारत की रहस्यमयी रोप ट्रिक-सी है तुम्हारी सखी अहल्या । उसके स्वभाव का कौन-सा भाग सत्य है और कौन मिथ्या, यह मेरे लिए एक अबूझ पहेली ही रही है। । कभी वह अनोखी आत्मीयता से निकट खिंच आती है और दूसरे ही क्षण कटी पतंग की तरह हवा में दूर उड़ जाती है”

शिवानी जी को ख्याति इसी उपन्यास से मिली, चौदह फेरे एपिसोड्स के रूप में सबसे पहले धर्मयुग पत्रिका में छपना शुरू हुआ था, किताब का शीर्षक पाठक के मन में जिज्ञासा पैदा करता है जिसका मर्म किताब के आखिर में पता चलता है, चौदह फेरे की मुख्य पात्र अहिल्या का जन्म अलमोड़े में होता है लेकिन परिस्थितियों के चलते उसके पिता उसे बोर्डिंग स्कूल, ऊंटी भेज देते है।

माँ से बचपन में ही अलग हो जाने वाली अहिल्या अपने पिता की एक महिला दोस्त, मल्लिका की संगत में रहकर बड़ी होती है, मॉडर्न परिवेश में पाली अहिल्या का रिश्ता उसके पिता अपने ही समाज में करना चाहते हैं, वो बिटिया को किसी बेशकीमती हीरे सा छुपाए, अपने कुमाऊँ अंचल में लौटते हैं, वहीं से अहिल्या की जिंदगी में नया मोड़ आता है, नए पात्रों का जिंदगी में आना, अनछुए एहसासों का मन में जगह बनाना, हिमालय जाकर एक आश्रम में वासित अपनी माँ से मिलना, प्यार के कहे-अनकहे के बीच अपने मन को समझाना, प्यार में पड़े दिल की उलझनें, और उन्हे सुलझाने की कोशिश, शिवानी जी ने अल्हड़ खूबसूरती से रचा है ये उपन्यास “चौदह फेरे”

अतिथि 



शिवानी जी के उपन्यास अतिथि का कथानक शुरुवात में किसी बॉलीवुड मूवी का भ्रम देता है लेकिन धीरे धीरे इसकी प्याजी परतें खुलती है और पाठक का मन ऊन के गोले सा पात्रों के साथ बंधता चला जाता है, इस उपन्यास की मुख्य पात्र जया सरल और स्वाभिमानी लड़की है, सरकारी मास्टर की बेटी आत्म-सम्मान को सर्वोपरि मानती है।

जया के कॉलेज में हुए एक जलसे के दौरान, प्रदेश के मंत्री माधव  बाबू  जो की जया के पिता के बचपन के साथी भी थे, जया को देखते है और मन ही मन उसे अपने बेटे कार्तिक के लिए पसंद कर लेते हैं, माधव बाबू के घर में एक गरीब घर की बेटी लाने के उनके विचार पर शीत युद्ध सा छिड़ जाता है, माधव जी बिना किसी की परवाह किए, बिना बाह्य आडंबर के जया को शादी कर अपने घर ले आते हैं, जया के परिवार वाले शुरू में इस रिश्ते को पसंद नहीं करते, कार्तिक के चरित्र को लेकर जो अपवाहें फैली हैं उससे उनका मन संशय से भरा रहता है, लेकिन माधव जी के यकीन दिलाने और कार्तिक का बार बार जया से मिलने की कोशिशें, इस रिश्ते को एक जमीन दे देतीं है, माधव बाबू के घर के सदस्यों की रजामंदी न होने पर जया को कैसे अपने ससुराल में नीचा देखना पड़ता है कैसे वो स्वाभिमानी लड़की अपने वजूद के टुकड़े समेटे आगे की जिंदगी की राह खुद तलाशती है, कैसे माधव जी को जानते बूझते की गई अपनी गलती का पश्चाताप होता है। उपन्यास का हर एक पात्र जीवंत हर एक एहसास जिया हुआ महसूस होता है, शिवानी की दुनिया जितनी स्वाभाविक है उतनी ही संघर्षों से भरी, यहाँ दुख है और अकेलापन भी, इसके बावजूद कोई भी पात्र बेबस लाचार नहीं है, अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीना जानता है, जहां संस्कारों को मानता है, वहीं बेबुनियाद रूढ़ियों को तोड़ता भी है।  

राजनैतिक कलह, पारिवारिक मनमुटाव और दो विपरीत विचारधारा वालें लोगों का मेल, इनही ताने-बानो के बीच बुना है शिवानी का ये उपन्यास “अतिथि”

चौदह फेरे और अतिथि दोनों ही उपन्यास राधाकृष्ण प्रकाशन से हैं, साथ ही किंडल वर्जन में भी उपलब्ध हैं। 

December 04, 2019

रेनर मारिया रिल्के: एक युवा कवि को पत्र (अनुवाद: राजी सेठ)




रिल्के से मेरा परिचय इसी किताब के अंग्रेज़ी संस्करण से हुआ, तब किताबें पढ़ना शुरू किया था साहित्य की असीम सतहों से वाकिफ नहीं थी, लेखकों की लंबी फेहरिस्त में से कुछ ही नाम जानती थी, उस वक्त ये किताब एक तरह से जिंदगी से मिलवा गई, जैसे एक अधबने माटी के बुत को आकार देने की कोशिश हो रही हो।

किताब में रिल्के के लिखे ये दस खत ना जाने कितनों के लिए रहबर बन मुश्किल वक्त में उनके साथ खड़े हुए होंगे, जीवन में लेखन और भविष्य को लेकर परेशान फ़्रांज काप्पुस, एक युवा कवि ने जब रिल्के से अपनी जिंदगी और कविताएं साझा की तो वो कहाँ जानते होंगे कि यही खत साहित्य जगत में रिल्के की पहचान बन जाएंगे, जब कोई रिल्के को पढ़ने के लिए सुझाव देता है तो यही कहता है शुरुवात उनके खतों से कीजिए।

जब काप्पुस अपने लेखन को लेकर संशय में थे और सेना में भर्ती होने का विचार कर रहे थे तब रिल्के से किए सवालात इन दस खतों में शामिल हैं। रिल्के ने ये नहीं सिखाया कि लिखा कैसे जाता है उन्होने लेखक होने के लिए जरूरी आत्मविश्वास के महत्व से अवगत कराया है, एक खत में वह लिखते हैं  

“अपने भीतर जाइए। उस कारण को खोजिए, उस आवेग को ढूंढिए जो आपको लिखने पर विवश कर रहा है। इसे इस रूप में आंकिए कि क्या इसकी जड़ें आपके मन की गहराई तक पहुंच रही हैं? क्या आप दृढ़ता से कह सकते हैं कि यदि लिखने से आपको रोका गया तब मर जाएंगे? और सबसे बड़ी बात, रात के गहरे सन्नाटे में अपने आप से पूछिए: क्या मुझे लिखना चाहिए?”

लेखन की शुरुवात करते दोस्तों को गूढ़ मंत्र सा देकर कहते हैं, “अपने दुःख, अपनी चाहतें, अपने विचार और किसी भी सुंदर चीज पर आपका यकीन, इन सभी पर लिख डालिए। उत्साह, विनम्रता और गंभीरता के साथ इनका वर्णन कीजिए। अपनी अभिव्यक्ति के लिए अपने आस पास की चीजों, अपने सपनों के दृश्य और अपनी स्मृति के विषयों का भी सहारा लीजिए"

ख्याति पाने के बाद अक्सर लेखक अपनी पहली सी बेबाक होकर लिखने की आदत खो बैठता है, इसी पर रिल्के ने सरल बात कही है “सच्चे कलाकार के लिए यह सबसे कठिन परीक्षा है कि वह अपने सद्‌गुणों से बेखबर रहे ताकि उसकी स्वछंदता बनी रहे”

लेखक होना कोई ओहदा नहीं बल्कि एक जीवनशैली है, यही  समझाईश रिल्के के एक खत में देखने को मिलती है “आप युवा हो और जिन्दगी शुरू करने जा रहे हो, आपसे अनुरोध करता हूं कि आप उन सभी मुद्दों पर धीरज रखें जो कि आपके हृदय में इस वक्त अनसुलझी स्थिति में हैं। सवालों के प्रति वैसा ही स्नेह रखें जैसे बंद कमरे में ताला लगा हो या फिर पराई भाषा में किताब लिखी हो। अभी तुरंत इनके जवाब मत तलाशिए। अभी आपको इनके उत्तर नहीं मिलेंगे क्योंकि वे आपकी समझ से परे हैं। बात अनुभव करने की है। अभी तो आपको सवालों के साथ जीना है”

“एक आनंदित जीवन शैली को रूप देने और रचने की क्षमता शायद आप में विद्यमान है। उसे पाने के लिए अनुशासित रहें, पर जो आए उसे विश्वास के साथ स्वीकार करना सीखिए; जब वह आपकी स्वेच्छा और अंतर प्रेरणा से आए स्वीकार कीजिए और किसी चीज से घृणा न करें”

लेखक की जिंदगी भी कितनी अबूझ है, जहां अकेलापन है जो जाने अनजाने उसे लेखन के क्षेत्र में धकेलता है वही उसे लीलता है वही उसकी लेखकीय क्षमता का पोषण करता है, काप्पुस जब अकेलेपन से जुड़े सवालात रिल्के के सामने रखते हैं तो रिल्के जवाब में लिखते हैं

“मेरे प्यारे दोस्त, अकेलेपन को गले लगाकर उसे प्यार कीजिए। उसका दर्द सहना सीखिए और उसके संग गुनगुनाइए। आप कहते हैं कि जो आपके अज़ीज़ हैं वे आपसे दूर हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि आपका विस्तार बढ़ रहा है तब आपको लगेगा कि आप इतनी दूर चले गए हैं मानों सितारों में से एक हैं। आपका क्षितिज काफी विस्तृत हो चुका है। अपने इस विकास का आनंद मनाइए, इसमें कोई अन्य शामिल नहीं हो सकता।“

“अकेलापन और आंतरिक एकांत बहुत ज़रूरी है। आपको घंटो अपने भीतर रहने और किसी से न मिलने की स्थिति को पाने की कोशिश करनी चाहिए”

कई लेखकों के आगे यह समस्या रही है कि वो समाज से दूर रहकर भी समाज में बने रहने की चाह रखता है, इस उलझन पर रिल्के अपना मत रखते हैं

“आपसे बिछुड़ गए हैं उनके साथ अच्छा बर्ताव करिए और उनकी मौजूदगी में शांत एवं आत्मविश्वास से पूरित रहिए। अपनी शंका से उन्हें दुःखी मत कीजिए और अपने विश्वास और उल्लास से उन्हें चकित भी मत कीजिए क्योंकि वे उसे समझ नहीं पाएंगे। उनके साथ ऐसा सरल रिश्ता बनाएं जिसमें आपसी समन्वय की भावना हो और जो आपके बदल जाने पर भी ना बदले। उनके जीवन से भी प्यार कीजिए यद्यपि वो आपसे भिन्न होगा। बुज़ुर्गो के प्रति संवेदनशील रहें क्योंकि जिस अकेलेपन पर आप विश्वास करते हैं उससे वे डरते हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच के तनाव से बचे रहिए। इन घटनाओं से बच्चों की ऊर्जा नष्ट होती है और बड़ों का प्यार भी। उनके प्यार में फिर भी वो नरमी है जिसे समझना मुश्किल है

जब लिखना हर दिन संघर्ष लगे, सफ़ेद कागज को देखकर डर लगे तो इसी किताब से लिया गया रिल्के का कथन दोहराया जाना चाहिए  हमें संघर्ष को गले लगाना पड़ेगा। हर जीव इसे मानता है। प्रकृति में हर चीज अपने ही ढंग से संघर्ष करती है और विकसित होती है तथा अपनी पहचान बनाती है और इसके लिए वह हर कीमत पर, हर विरोध के सामने अड़ी रहती है।

“अनहोनी का डर न केवल व्यक्ति के अस्तित्व को हीन बना देता है बल्कि व्यक्तिगत संबंधों को भी सीमित कर देता है। मानों जैसे डर ने चीजों की असीम संभावनाओं को भरी नदी के तट से उठा कर किसी बंजर जमीन पर फेंक दिया हो जहां कुछ भी उपजाऊ नहीं है। इस नीरस और नवीकरण रहित दशा के लिए न केवल निष्क्रियता ही जिम्मेदार है अपितु घृणा भी हर नई चीज के लिए, हर अपरिचित अनुभव के लिए जिम्मेदार है जिसे हम मानने से इंकार करते हैं। महज़ ज़िन्दा रहने से बढ़कर, जीवन से रिश्ता केवल उनको नसीब होता है जो जीवन में किसी भी चीज का सामना करने का साहस रखता है, जो रहस्यपूर्णता को अपने जीवन से अलग नहीं करता

किताब के अंत तक आते आते रिल्के लेखन से इतर ज़िंदगी पर लिखते हैं कि

आप प्रयासों की अधिकता को इसलिए अधिक महत्पपूर्ण मानते हैं क्योंकि आप जीत को बहुत महत्व देते हैं, पर वो इतनी बड़ी नहीं जितना आप समझते हैं। हालांकि यह महसूस करना आपके अधिकार में है। बड़ी चीज तो वह है जो पहले से मौजूद थी और आपको अपनी भ्रांतियों से इसे बदलने की अनुमति दी गई”

रिल्के के मरणोपरांत छपी ये किताब साहित्य जगत में अपना अलग मुकाम रखती हैं, इसका हिन्दी अनुवाद राजी सेठ ने किया है और किताब “योगी इंप्रेशंस” से प्रकाशित है।