“ग़लत”
“मीठी...रेबड़ी?”
“आज बर्फी है.. वो भी दो-दो”
“तो क्या आज भी मंगलवार है ?”
“नहीं आज मंगलवार का छोटा भाई है....बुधवार”
“भैया, मुझे शनिवार
नहीं पंसद..वो सब तेल क्यूँ चढ़ाते हैं? भगवान क्या तेल खाते है?”
“भगवान तो बर्फी भी नहीं खाते"
“धीरे बोलो उन्हें पता लगा तो कल से चढ़ाना बंद कर देंगे”
“धीरे बोलो उन्हें पता लगा तो कल से चढ़ाना बंद कर देंगे”
“नहीं करेगे... पंडित जी ने आज खूब हाथ
टटोले हैं”
“मुझसे तो वो बोले तेरे हाथ में कोई भाग-रेखा
नहीं है”
“ये क्या खड़ा तेरे सामने इत्ता बड़ा...देख
मुझे उपर से नीचे तक भाग-ही-भाग है...चल तुझे गन्ने का रस पिलाऊँ...आजा..!”