January 15, 2016

इक सपने का सिरा..

Photo Credit: Google
पथराई नज़रों से देखा था मैंने तुम्हें
जैसे तुम मेरे जिस्म से जाँ खींच कर ले जा रहे थे 
उस तिरंगे की गुनगुनी चादर में लिपटा तुम्हारा धड़कता दिल
अब खामोश था।
तुम्हारे सुर्ख होंठो पर खिलती रेखा बता रही थी..
अपना सपना जिया था तुमने..
एक सपना जो तब शून्यता में विलीन हो गया था..
लोगों की नज़रों में बेबसी बिखरी थी
मेरी नज़रों में तुम्हारे जिंदादिल सपने का अधूरा सिरा
चार साल बीत गए..या मैं ही गुज़र गयी एक सदी की तरह्
पर वो तुम्हारा सपना...तुम्हारा वजूद जिंदा है..औजिंदा रहेगा..
मेरी वर्दी बनकर..

- अंकिता चौहान 

(आज सिरहाने के लिए लिखी गई थी)