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तापमान -40 डिग्री, कोहरे में लिपटे बादल...वहीं
बर्फ की पहाड़ियों के बीच घुटनों पर रेंगती एक परछाई आगे बढ़ रही थी...उसकी सांसे
जैसे गले से निकलकर होंठों पर जम गई...एक-एक कदम मानो मीलों का सौदा था...उसने
गर्दन घुमाकर पीछे देखा..अपने 26 साथियों के अस्थाई बंकर से काफी दूर पहुँच गया था
वह...दिल में एक संशय था..एक हल्की-सी पशेमानी..
“कहीं मैं भी एक
तारीख बनकर न रह जाऊँ..?” लेकिन तिरंगे के सामने उठता हुआ सिर..उसके
हिलते हुए विश्वास को फिर प्रज्वलित कर गया।
“सारे जहाँ से अच्छा...हिन्दोस्तां हमारा” तभी सामने से आती गोलियाँ उसके आस-पास
बिखरी बर्फ को लाल कर चुकी थी।
- अंकिता चौहान
P.s. : (आज सिरहाने के लिए)