January 31, 2016

सियाचिन फ़तह - कहानी

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तापमान -40 डिग्री, कोहरे में लिपटे बादल...वहीं बर्फ की पहाड़ियों के बीच घुटनों पर रेंगती एक परछाई आगे बढ़ रही थी...उसकी सांसे जैसे गले से निकलकर होंठों पर जम गई...एक-एक कदम मानो मीलों का सौदा था...उसने गर्दन घुमाकर पीछे देखा..अपने 26 साथियों के अस्थाई बंकर से काफी दूर पहुँच गया था वह...दिल में एक संशय था..एक हल्की-सी पशेमानी..कहीं मैं भी एक तारीख बनकर न रह जाऊँ..?लेकिन तिरंगे के सामने उठता हुआ सिर..उसके हिलते हुए विश्वास को फिर प्रज्वलित कर गया।
सारे जहाँ से अच्छा...हिन्दोस्तां हमारा तभी सामने से आती गोलियाँ उसके आस-पास बिखरी बर्फ को लाल कर चुकी थी 

- अंकिता चौहान

P.s. : (आज सिरहाने के लिए)