Photo Courtesy : Aruna Di |
सब कुछ पा लेने की जद्दोज़हद में ‘बेफिक्र’ लफ्ज़ के मायने ही भुला चुके हैं हम। बेफिक्र या तो बचपन था या ये रिमझिम बरसती बारिशें, जब भी इनका जिक्र होता है तो जाने कहाँ से
धीमी-धीमी चाल में वही बेफिक्री ख्यालों में आकर, दस्तक देती है,
हर बार मिलती है एक
नये ही पैगाम के साथ।
सावन आने में अभी लगभग एक महीना बाकी है, लेकिन बादल भरने लगे है, इनकी गड़गड़ाहट, संदेशा है शायद खेतों के लिए प्रकृति का, और हम यहाँ वही सोलह पंक्तियों का ई-मेल
पाकर खुश हो जाते है।
बारिश के आने भर का अहसास ही ज़हन में
उमंगों को जन्म देता है। वो धुली-धुली सी पत्तियाँ खुशियों का इज़हार करती दिखती
हैं जैसे माँ ने अपने नन्हे को नए कपड़े पहना दिए हो, अंगड़ाइयाँ लेती बेलें विस्तार पाने लगती हैं।
राग मल्हार के ऊँचे-नीचे सुर बांधते
पंछियों की वह चहचहाहट जैसे इन रंग-बिरंगे पक्षियों ने खुद को ही असाइन्मेंट दे
डाला हो हमें उन्मुक्त ज़िन्दगी के फलसफे से अवगत कराने का।
फूलों से लदी, हिलोरे लेती टहनियों और नाज़ुक पंखुड़ियों पर पानी के मोती से बिछ जाते हैं, दिल करता है इन नन्ही नन्ही बूँदों को किसी तिनके में पिरो, डाल लूँ हाथों में किसी कंगन की तरह। खनक भले सुनाई ना दे, लेकिन सच्चाई में लिपटी एक बेफिक्र मुस्कान जरूर खिलेगी, इन उदास लम्हों में..!
- Ankita Chauhan