6 मई को मधुरिमा(दैनिक भास्कर) के मातृत्व
विशेषांक में एक छोटी सी कहानी या कहिए संस्मरण प्रकाशित हुआ। बेहद खुशी हुई, जिसकी अपेक्षा ना की हो, उसका मिल जाना जादू सा लगता है ना।
दो दिन पहले दैनिक भास्कर की तरफ से एक लिफाफा आया, एक cheque था। हैरान थी मैं और थोड़ा-सा खुश भी, लिखने के पैसे मिलते हैं?
मधुरिमा ने अपने अमूल्य पृष्ठों के बीच
मेरे शब्दों को स्थान दिया,
ये अपने आप मे किसी
उपहार से कम नहीं था मेरे लिए। पापा खुश थे मुझसे कई ज्यादा खुश। ‘शाबाश’ कहा
उन्होंने, ज्यादा बोलते नहीं हैं वो, मेरे नॉव्लस पढ़ने को या कुछ लिखने को वो
सिर्फ शौक की तरह ही देखते हैं, लाइक
अ टाइमपास।
“ऐसे ही खूब लिखा करो, और इस cheque एक शॉट (Photo) ले लो”
“रहने दो पापा, छोटू सा amount है, कभी
कुछ बड़ा मिला तो पक्का लूंगी” और
टाल दिया मैंने पापा की बात को।
पापा फिर उस लिफाफे को देखने लगे, मुझे नहीं पता क्या ढ़ूंढ रहे थे वो उस
कागज़ के टुकड़े में। दैनिक भास्कर लिखा था और घर क पता, Ankita Chauhan, D/O ******* *****
Chauhan
शाम को घर आये तो वही लिफ़ाफा थमाते हुए
बोले-
“वो cheque तो मैंने जमा करवा दिया, लिफाफे में उसकी एक फॉटोकॉपी है, इसको संभाल के रखना, पहला है”
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