मेरे इस छोटे से ‘प्रयास’ को मधुरिमा (मातृत्व
विशेषांक 6 मई 2015) में जगह देने के लिए दैनिक भास्कर और रचना संमदर जी (संपादक)
को ढेर सारा शुक्रिया।
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Madhurima : Dainik Bhaskar |
प्रयास
अतीत की स्मृतियों में खो जाना और धीमे-धीमे मुस्कुराना,
अक्सर माँ को ऐसे ही देखा था मैंने। आज अपने पुराने बक्सों में समायी यादों को
टटोलते देखा तो उनके पास जा बैठी मैं। माँ अक्सर कहा करती थी ये कपड़े नही तुम्हारा
बचपन है मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत यादें। एक दिन जब तुम इस घर से विदा हो जाओगी
तब भी ये यादें मेरे पास रहेंगी।
आज माँ उन्ही कपड़ों को तत्परता से एक बैग में डाल
रही थी। पूछा मैंने “ क्या इस खजाने को बैंक लॉकर में रखवाने का इरादा है?”
- अंकिता चौहान