May 24, 2015

प्रयास : मातृत्व विशेष


मेरे इस छोटे से ‘प्रयास’ को मधुरिमा (मातृत्व विशेषांक 6 मई 2015) में जगह देने के लिए दैनिक भास्कर और रचना संमदर जी (संपादक) को ढेर सारा शुक्रिया।   

Madhurima : Dainik Bhaskar

प्रयास

अतीत की स्मृतियों में खो जाना और धीमे-धीमे मुस्कुराना, अक्सर माँ को ऐसे ही देखा था मैंने। आज अपने पुराने बक्सों में समायी यादों को टटोलते देखा तो उनके पास जा बैठी मैं। माँ अक्सर कहा करती थी ये कपड़े नही तुम्हारा बचपन है मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत यादें। एक दिन जब तुम इस घर से विदा हो जाओगी तब भी ये यादें मेरे पास रहेंगी।

आज माँ उन्ही कपड़ों को तत्परता से एक बैग में डाल रही थी। पूछा मैंने “ क्या इस खजाने को बैंक लॉकर में रखवाने का इरादा है?”  

माँ की आँखों में नमी थी, मेरे बालों में अपनी हथेली फेरती हुए कहा - “ठंड तेज़ है, क्लॉस में पढ़ाते वक़्त, जब मैं स्वेटर और एक शॉल लपेटकर भी क़ंपकपी महसूस करती हूँ तो उन ग्रामीण किसानों के बच्चे झीने-से कपड़ों में होते हैं। वही किसान जो इंसानी वजूद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके नन्हों का जीवन इतना सर्द क्यूं हो? यह मेरा छोटा-सा प्रयास उनके आज में रंग भर सकता है। यादों का क्या है, और बन जाऐगीं।“  
        
  -  अंकिता चौहान