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अधरों पर मुस्कान की
एक झूठी परत चड़ाए पार्क में बैठी,
मैं निहार रही थी प्रकृति को तभी एक छवि उभरी और
कुछ शब्द
“ खर्च कर दीजिए
इन
खिलखिलाते लम्हों को
ताउम्र सहेज कर,
क्या इनका मुरब्बा बनाइयेगा !”
कैंसर से संघर्षरत वो मुस्कुराता हुआ शक्स
ज़िन्दगी भर गया मेरे निर्जीव हो चुके लम्हों में... !!
- अंकिता चौहान