August 19, 2022

GULZAR's TERE BINA ZINDAGI SE...

 



गुलज़ार के लफ्ज़ खामोशी से बिंधे हैं, यही संगीत है।

तेरे बिना ज़िंदगी से। उनका अहम गीत। जब से समझ बढ़ी, याद नहीं कभी इसे शुरू से अंत तक सुन पाई हूँ। ये गीत जगह मांगता है अपनी पूरी जगह। जीवन लग जाता है अपने भीतर उस जगह को तराशने में जहां इस गीत को बैठाया जा सके, पोसा जा सके। एक अजीब चुप्पी घिर आती है, जब गुलज़ार लिखते हैं ‘काश ऐसा हो, तेरे दामन में, सर झुका के हम, रोते रहें.. रोते रहें।

गीत के दृश्य में संजीव और सुचित्रा जिस तरह एक दूसरे को ना देखते हुए भी देखते हैं, नज़रों में फ़ैली बेतरतीब उदासी, उनके अकेलेपन की गवाह है। जैसे एक कठिन समय में लिया गया निर्णय लम्बे विलाप की राह तय कर आया हो। उम्र भर की थकान भरी हो सीने में। दूसरे के हिस्से का प्यार ढोना अब मुमकिन नहीं। क्या सौंप दें दूसरे को बेहिचक? दूरियों के बावजूद रिश्ते की तपिश बाकी है? इस दफ़ा नेह या दुःख नहीं, अहम् को परे रख, पछतावा भी साझा कर सकें।

वे दोनों चाँद में अपने बिखरे रिश्ते की गहराई ढूंढते हैं, दीवारों पर अरबी आयात में अपनी उम्र, याकि ढूंढते हैं खुद को ही इनके बीच कहीं। एक सटीक शब्द, जो लौटा ले जाएं उन्हें, उसी जगह छोड़ आए.. जहां साथ मिल एक सपना देखा होगा, जो अधूरा है, अधूरा ही रहे शायद।

क्या अकेलेपन से कोई मन इस क़दर भी थका होगा जो मंजिल की जगह अपने साथी के कदमों संग अनजान रास्ते की चाहना रखता हो।

‘तुम ग़र साथ हो मंज़िलों की कमी तो नहीं’। इतना अरसा होने के बाद भी हम इस गीत की गिरफ़्त में है। यह गुलज़ार साब का जादू है, उनके होने का अर्थ भी। ♥️