हिन्दी में
लिखी एक किताब का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाना क्या मायने रखता है? राजस्थान के एक बहुत ही साधारण कस्बाई शहर में एक साधारण
से घर में सुबह छः बजे से हलचल मची है, रात को इंतज़ार करते हुए सो गए, सुबह ट्वीटर पर पढ़ा कि बुकर प्राइज़ इस बार
हिन्दुस्तान आ रहा है। गीतांजलि श्री ने अनुवादक डेज़ी रॉकवैल के साथ मिलकर वाकई इतिहास
रच दिया है।
यकीं
करना मुश्किल है। लेकिन ये हुआ है। हिंदी को इतनी ऊँचाई पर देखना आँखों के फोकस को फिर से सेट
करने जैसा है। और जब बात भारत की हो तो ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, कठोर सच
है लेकिन यहाँ रीडिंग कल्चर इतना विस्तृत नहीं है। यकीं मानिए मेरी मुठ्टी भर
किताबों की अलमारी को देखकर लोग अचरज से भर जाते हैं। यहाँ बताना चाहूंगी, मेरा
शहर एक टाइगर सेंचुरी होने की वज़ह से विश्व भर में जाना जाता है लेकिन यहाँ
किताबों की (कोर्स की किताबों के इतर) एक भी दुकान नहीं है। जो कह रहे हैं एक
किताब क्या ही बदलाव लाएगी, तो ये कुछ मोमेंट्स जो मैंने कल के दिन अपने आस-पास
घटते देखे।
१. जब
पापा को बताया तो पापा ने पहली बार मेरी बुकशेल्फ़ का कांच खिसकाया और रेत-समाधि
निकाली, अलट-पलट के देखा, एक पेज पढ़ा, बैक-कवर पर लिखा हर एक शब्द धीरे-धीरे पढ़ते
गए। श्री की किताबों को जो कि विधा अनुसार जमी थीं, निकालकर एक साथ रखने लगे, मेरे
मना करने के बावजूद। साधारण सी बात है ना, मेरे लिए बहुत अहमियत रखती है। जब आपके काम के फ़ील्ड को सिर्फ़ शौक़ की तरह ना
देखकर उसे अहमियत मिलती है, सम्मान मिलता है तो आप महसूस करते हैं कि ज़िंदगी धीमी
ही सही लेकिन सही दिशा में है। गीतांजलि श्री ने जाने कितनी लड़कियों को आज आत्मविश्वास
की चाबी थमाई है।
२. ज़माने
से भूले दोस्तों के मैसेज कई ज़रिए तलाशते हुए, कल मेरे पास आए। रेत समाधि पढ़नी
चाहिए? कैसी किताब है? किताब से जुड़े सवाल तो मिलते रहते हैं, मैं भी सबसे पूछती रहती हूँ, प्रियंका
दुबे जी से तो बेधड़क पूछ लेती हूँ और वह कभी निराश नहीं करते। लेकिन कल सवालों की जैसे
बाढ़ सी आई हो। गीतांजलि श्री की कृति ने वही किया है जो अच्छा साहित्य करता है।
लोगों को जोड़ता है, खाई को पाटता है, जो कि उन्होंने अपनी
किताब में भी लिखा है, किताब में सरहद पर लिखे अंश को मैंने जाने
कितनी बार पढ़ा होगा।
३. ट्वीटर
पर मेरी टाइमलाइन पर ढेरों पोस्ट्स थे जहां एक ही बेचैनी दिखी — स्कूल के बाद तो
हिंदी की किताब कभी उठाई ही नहीं गई — हिंदी पढ़ना तो मुश्किल है ही, किताबें उपलब्ध
भी नहीं होतीं, जब आपके सामने इतने ऑप्शन रखे हों, तो जद्दोजहद करके एक हिंदी की किताब ढूंढ निकालना, समय किसके पास है? मुझे
तो कई बार टोका जाता है, किताब पढ़ो, किताबों के बारे में लेख
पढने से क्या होगा। मुझे पसंद है, जानना कि, क्या पढ़ा जा रहा
है। मेरी टैब में इतनी लिट् मैगजींस के टैब्स बुकमार्कड रहते हैं। जब लेखकों को
किताबों के बारे में बात करते देखती हूँ तो उम्मीद से भर जाती हूँ। किताबों का
होना दरअसल घर का होना है, पैरों के नीचे ज़मीन का होना है। गीतांजलि श्री का ये एक
उपन्यास जाने कितनी हिंदी की किताबों को नया घर देने वाला है, आप इसका अंदाजा भी
नहीं लगा सकते।
४. किताब
का अनुवाद डेजी रॉकवैल ने किया है, आप उनके बारे में जाकर पढ़िए, अनुवादक अक्सर
बैकसीट पर बैठते हैं, लेकिन देखा जाए
तो अनुवादकों के बिना दूसरी भाषा के शब्द हमारे लिए कुछ काले स्याह अक्षरों से
ज़्यादा कुछ नहीं हैं। जब यह किताब लॉन्गलिस्ट हुई तो विवेक तेजुजा जो कि खुद एक
शानदार लेखक हैं, उन्होंने रॉकवैल से इस पर बात की, वह बातचीत आपको उनके इंस्टाग्राम
अकाउंट पर मिल जाएगी। रॉकवैल चेहरे पर मुस्कान लिए एक एक कर सवालों के ज़बाव देती
चलती हैं, उनकी आवाज़ में शब्दों में संजीदगी है। वे एक
बेहतरीन आर्टिस्ट भी हैं। ज़ाहिर है रेत-समाधि की यह सफलता अनुवादकों के लिए भी सम्मान पैदा करेगी।
५. कित्ताब का अंग्रेज़ी अनुवाद Tilted Axis Press से आया है। जो कि एक इन्डीपेंडेंट पब्लिशर हैं।
इसकी नीँव Deborah Smith ने 2015 में रखी
थी। स्मिथ Han Kang की किताब The Vegetarian की अनुवादक हैं। ये पब्लिशिंग हाउस कंटेम्पररी
एशियन लिटरेचर को बढ़ावा देता है। Arunava Sinha द्वारा अनुदिन Abandon यहीं से प्रकाशित है। संगीता
बंद्योपाध्याय की किताब का बेहतरीन अनुवाद किया गया है। मूल कृति नहीं पढ़ी लेकिन उस
किताब के दृश्य अभी तक haunt करते हैं। Anurava Sinha ji का तो सारा काम ही पढ़
लेना चाहिए।
६. रेत-समाधि
२०२० में खरीदी थी। राजकमल प्रकाशन ने हाल में इसका नया संस्करण निकाला है जिसका
कवर काफ़ी tempting है। मैं एक किताब के
कई संस्करण नहीं ले पाती लेकिन इसका लेना चाहूंगी। किताब के कवर पर मौजूद पेंटिंग रॉकवैल
जी की है। जो कहानी की पूरक है।
७. कुछ
दिन पहले प्राईमरी में पढ़ने वाली एक बच्ची ने एक सवाल किया था कि — इन किताबों को पढ़ने
से क्या होता है? मैंने उस वक़्त
तो यही कहा था, आपकी समझ बढ़ती है, अच्छे इंसान बनते हो। रेत-समाधि
के बारे में मीडिया में पढ़कर, देखकर, शायद अब ये सवाल और भी कई बच्चे पूछेंगे। खुद
से किया एक सही सवाल नए रास्ते खोलता है।
८. गत
वर्ष क्लबहाउस पर चन्दन पाण्डेय जी की किताब वैधानिक गल्प पर एक सेशन रखा गया था,
वास्तव में बात अनुवाद पर हो रही थी, Legal Fiction, अनुवादक भारत भूषण तिवारी जी भी मौजूद थे।
सवाल पूछने का मौक़ा मिला। तब रेत समाधि और उसके अनुवाद ‘टूम ऑफ़ सैंड’ को मेंशन
किया था। उस पर फिर बात भी हुई। अच्छा साहित्य किस तरह अपनी जगह साधता है।
ये सब
कल लिखना चाहिए था। कल इतना खुश थी, आँखें भरती रही खाली होती रहीं, पागलपन हैं ना। राजकमल प्रकाशन समूह को, गीतांजलि
श्री जी को ढ़ेरों शुभकामनाएं और डेज़ी रॉकवैल को दिल से शुक्रिया।