लेखक: शिशिर सोमवंशी
प्रकाशक: किताब महल
विधा: कविता-संग्रह
पृष्ठ: 200
ISBN: 978-9387253841
बीते दिनों शिशिर सोमवंशी जी की कविताओं का नया संग्रह पढ़ा, ‘आत्मा का अर्धांश’। एक लेखक के लिए आत्मा का आधा हिस्सा उसका रचना-कर्म हैं और आधा हिस्सा उसके द्वारा जिया प्रेम। शिशिर जी का लेखन, कविता और प्रेम को एक ही धरातल पर साझा करता है, जैसे उनके लिए कविता कहना और प्रेम करना दो अलग अलग बातें ना होकर एक ही हों।
ये कविताएँ पढ़कर लगता है कि, रचनाकार रिश्ते के बीच की उलझन को किस हद
तक समझता है, अगर उलझन में हो साथी का मन, तो दूसरे के लिए कैसे नींद इक ख्वाब बन
जाती है।
कविताओं की भाषा शैली क्लीष्ट नहीं, शब्दों में सहज़ता लिए हुए है, जो सरल मन का प्रतीक है, उनकी कविताओं में फूल हैं, शाखें हैं, नदी है, धाराएँ है और इक सवेंदनशील हृदय है, जो प्रेम में मन को पढ़ता है, और चुप को सुनता है। यहाँ इसी कविता-संग्रह से कुछ अंश साझा कर रही हूँ।
प्रेम की अस्मिता
नेत्रों में मुखर
लालसा नहीं
वरन हृदय में
शमित आस है
— अस्मिता
कुछ गीत
छू लेते है अंतस
गूंजते रहते हैं
हवाओं में
वर्षों तक
फिर लौट आते हैं
अपने मयूरपंखी
स्पर्श से
मन का कोना
कोना सींचने को
तुम जैसे कुछ गीत है।
— तुम जैसे गीत
कितने यत्न से
शब्दों को
कागज़ पर
लिखता हूँ और
हर बार वही
एक कविता
बन जाती है — तुम
— असफल कवि
कनखियों से
संकोंची सा
देखता हूँ
सुख से
जी लेता हूँ उन्हें
जिन्हें जीना था
जिया नहीं मैंने
— चोरी
अर्थहीन है कि
सम्पूर्ण विश्व
मेरे बारे में
क्या सोचता है
तुम्हारे एक पल
उस सोच के साथ होने
भर से मैं
अपना अर्थ खो देता हूँ
— अर्थ
विशाल वृक्ष
का बीज
महीनों महीने
बर्फ, मिट्टी में
दबा रहता है,
प्रेम हो,
अथवा व्यक्ति
दृष्टि से ओझल
होने भर से
मृत नहीं
मान लेना चाहिये।
— बीज
अपनी उलझन
को तुम
अपनों में
बाँट कर
सोच कर
विचार कर,
सो जाना
थक हार कर।
जागता रहेगा
कोई उलझा हुआ—
कि आज
तुम उलझन में हो।
— उलझन
ऐसी राहों पे तुम्हारी
शीतल प्रकृति का
आभास करते हुए
नीले गुलमोहर के सहारे
आज भी आस लिए
निकलूंगा फिर से
बोलो किस मोड़ पे
मिलोगे तुम?
— नीला गुलमोहर
मेरे स्वप्न
क्यों विलक्षण हैं?
उन्हें मेरे अतिरिक्त
कोई नहीं देखता,
तुम ही नहीं।
और उनमें
तुम्हारे अतिरिक्त
कोई नहीं होता,
मैं भी नहीं।
— मेरे स्वप्न
‘आत्मा का अर्धांश’ शिशिर सोमवंशी जी का तीसरा कविता-संग्रह है, उनके
लिखे से मेरा परिचय उनके पहले काव्य-संग्रह ‘मोहभंग के बाद’ से हुआ था। उनका लेखन एक
ऐसी यात्रा है जिसमें वो निंरतर अपने भीतर उतर रहे हैं। अशेष शुभकामनाएँ, नित नया
रचते रहें।
पेशे से वानिकी वैज्ञानिक शिशिर सोमवंशी का बचपन कुमाउँ की रमणीक वादियों में बीता। प्रकृति के सानिध्य एवं यथार्थ की अनुभूतियों से उपजी कविताएँ यदा-कदा मुखर होती रही किंतु जीवन की व्यस्तता में सक्रिय लेखन संभव ना हो पाया। विगत कई वर्षो से शिशिर की कविताएँ नियमिल ब्लोग पर लेखन और कुछ कविताएँ पत्रिकाओं में निंरतर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में हिन्दी-शोध-पत्रिका “शोध तरू” का संपादन कर रहे हैं।
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