शीर्षक: छोटी छोटी
बातें
लेखक: मिथलेश बारिया
प्रकाशक: प्रभात
प्रकाशन
आईएसबीएन: 978-93-5466-668-3
विधा: कविता, साहित्य
पृष्ठ: 240
रेटिंग: 5/5
कविताओं की परिभाषा क्या है? सटीक शब्दों में
नहीं कह सकती, शायद कविता सफहे पर दर्ज शब्दों का ऐसा सिलसिलेवार गुच्छा होगी, जो
आपसे बोलती है, बातें करती है, ऐसी अनकही, जो सीधे दिल में उतरती है।
2019, की शुरूआत प्रभात प्रकाशन से आई, मिथलेश
बारिया की किताब “छोटी छोटी बातें” से हुई। अगर आप ट्वीटर पर मौजूद हैं और कविता-शायरी
में रुचि रखते हैं, तो #mbaria
हैशटैग के साथ मिथलेश बारिया की लिखी पंक्तियाँ
आप तक जरूर पहुँची होगी। इनकी लेखनी में एक अलग ही अल्हड़पन है, नवेला मिजाज़, जैसे
किताब में लिखा हर शब्द सिर्फ पाठक के लिए हो, उसकी जिंदगी से उठाया गया बारीक
अनुभव जिसे उसने अनदेखा कर दिया लेकिन मिथलेश बारिया की कलम ने उसे कैद कर दिया,
एक तरह से शब्दों का आईना, जो हमें सोचने पर मजबूर कर दे, जिससे जुड़कर हम कुछ देर
सच को, वास्तविक खुशी को जी लें।
यूँ तो, छोटी छोटी बातें, मिथलेश बारिया की पहली
किताब है, यकीन मानिए पढ़कर लगता है जैसे ये छोटी छोटी छंद रूपी कविताएँ गहरे अनुभवों
से उभरी हैं, सरल-सफ्फ़ाक भाषा, संवेदनओं से
लिप्त पंक्तियाँ वाकई पाठक को ताज्जुब में डालती है, हालांकि मिथलेश बारिया का लेखन
पिछले कई वर्षों से चल रहा है, यह किताब उसी लम्बी यात्रा का बेहतरीन हिस्सा है।
तुमने कुछ बातें
मुझसे,
चुप रहकर भी कही हैं
वो जो गीली चद्दर झटक
के ले आती थी,
ऐसी बारिश कहाँ से
लाऊँ?
अब जो सिर नहीं तेरा
मेरे काँधे पर,
उंगलियाँ कुछ
बेरोजगार सी हे
चार कदम भी न चल
पाया वो मुड़कर,
फासले जो मुझसे उम्र
भर के चाहता था
तुमने हाथ छोड़ा तब,
अपनी लकीरें नज़र आयीं
मुझे
मैं जब हारा था
तुमसे,
वो जीत तुम्हारी भी
तो नहीं थी
—
तुम
किताब को थीम के अनुसार कई हिस्सों में बाँटा गया
है, जैसे पहला हिस्सा ‘तुम’ रिश्तों के बीच अनकहे पलों को महसूस करवाता है, जो
अक्सर कहा नहीं जाता, उसी खामोशी को मिथलेश जी ने शब्दों की पैहरन दी है। इसमें
प्यार है, तो तड़प भी, कहीं बैचेनी है तो सूकून भी। किताब का दूसरा हिस्सा जिंदगी
को डिकोड करता दिखाई देता है,
उम्र यूँ बढ़ी कि
फिर तजुर्बा हो गयी
जिंदगी क़त्ल करती हे यहाँ अक्सर,
मौत ने न जाने कितनी जानें बख़्शी हैं
टिकटें लेकर बैठें हैं मेरी जिंदगी की कुछ लोग
तमाशा भी भरपूर होना चाहिए
तू और इम्तेहान ले जिंदगी
मेरे हौसलों की स्याही अब भी बाकी है
—
जिंदगी
किताब में ‘मोहब्बत’ शीर्षक के अंदर लिखी गयी
पंक्तियाँ पेड़ की नरम छाँव सी लगी, प्यार के एहसास को जैसे प्रिज्म के सामने रख
दिया हो, ताकि हर रंग अलग दिखाई दे।
हादसे रोज होते हे शहर में
तुझे हुई है मोहब्बत , नया क्या है
—
मोहब्बत
इसके अलावा भी मिथलेश बारिया
ने रोजमर्रा जीवन में घटे को अपने शब्दों में जिया है, एक तरफ वो बच्चों की मासूमियत
के बारे में बखूबी लिखते हैं और दूसरी तरह चाँद को संभाले रात को भी उसी शिद्दत से
जीवंत कर देते हैं।
घर में माँ को जितना
प्यार करते हैं, देश के लिए भी उतनी ही संवेदनशीलता रखते हैं, इनके लेखन का
विस्तार ही है कि कविताएं आँखों पर भी लिखी गयीं और दफ्तर पर भी, लफ्ज़ किताब कागज पन्ने
जैसे जिंदगी इन्हीं के इर्द गिर्द महसूस होती हो, यहाँ मिथलेश बारिया घर के उपर
लिखते हैं
उम्मीदें , ख्वाहिशें , जरूरतें ,
जिम्मेदारियाँ,
इस घर में मैं कभी अकेला नहीं रहता
ख्वाहिशों से भरा पड़ा है घर इस कदर,
रिश्ते ज़रा सी जगह को तरसते हैं
घडी की उन दो सुइयों के सिवा उस घर में,
सब कुछ रुका हुआ था, सब कुछ
—
घर
कई नामी पत्रिकाओं में, टीवी एड्स में, फिल्मों
की प्रोमो लाईंस में छाने के बाद, मिथलेश बारिया ने अपनी लिखी करीब 500 कविताओं का
बड़ी खूबसूरती से चुनाव कर उन्हें इस किताब में सहेजा है, जैसे हौंसले से भरी कोई
गुल्ल्क जो सफहा दर सफहा आपको खुद से मिलवा दे, मंजिल की ओर दौड़ते लोगों का हाथ
थामकर, उन्हें रास्तों से प्यार करना सिखा दे।
मिथलेश बारिया का लेखन सोच के नए आयाम खोजता है, बाकी
पाठक की तलाश पर निर्भर है, वो इस बेजोड़ खजाने में गोता लगाकर, जाने कौन सा मोती
पा जाएँ?
किताब की प्रति पाने के लिए: छोटी छोटी बातें
(अमेजन)
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