October 30, 2016
प्यार की कश्ती - यूपी की कहानियाँ विद नीलेश मिसरा
October 25, 2016
Book Review: Super Women by Prachi Garg
INTRO
— Louisa May Alcott
“I increasingly encountered situations which forced me to realize that while the youth potential of india was huge, their awareness and recognition of Indian arts, crafts and heritage was embarrassingly low. This of course included me because our education system was such. Though we train to be doctors, engineers and MBAs Nobody trains to be a traditional artisan designer Yes, artisan, No.”
It had merely begun a college project. I wanted to break conventions and work on something I could relate to, although I had very little knowledge about the survivors of acid attacks. Back then, the journey consumed me with one experience after another, I knew I would never be the same again.
During graduation a friend who had been going through severe anxiety owing to her job placement, committed suicide one random evening, I had never even realized that she had been going through so much stress. All I could think of was that she could have been saved. That was the turning point of Richa’s quest. From being a bystander and the mourner her heart was set on finding the solution and doing whatever she could do to save people from their states of stress anxiety or depression.
October 24, 2016
मासूम - यूपी की कहानियाँ विद नीलेश मिसरा
October 21, 2016
तितली - यूपी की कहानियाँ विद नीलेश मिसरा
October 02, 2016
किताब समीक्षा: ठीक तुम्हारे पीछे – मानव कौल
शीर्षक: ठीक तुम्हारे पीछे
लेखक: मानव कौल
पब्लिशर: हिन्दी युग्म
विधा: कहानी संग्रह
"इन तीन सालो में मैंने तुम्हें जितना जिया है और जितना तुमने
मुझे याद किया है हम वो सब एक दूसरे को वापस दे देंगे और फिर हमारे सबंध में 'है' के सारे निशान मिट
जाएँगे”
मैंने अभिनेताओं गायकों, गीतकारों पर लिखी हुई कई किताबें पढ़ी हैं। जिनमें उनके निज़ी जीवन से लेकर बॉलीवुड जगत में उनके संघर्ष और उपलब्धियों का जिक्र होता है। लेकिन किसी अभिनेता का खुद कहानी लिखना, ना केवल शौक की तरह बल्कि उन कहानियों को पूर्ण किताब की शक्ल देकर पाठकों के हाथों में सौंप देना, इतना आसान कहाँ होता है? अंग्रेज़ी भाषा में नसरुद्दीन साहब ने यह ईमानदार कोशिश की है उनकी आत्मकथा “एण्ड दैन वन डे” 2015 में सुर्खियों में थी। लेकिन हिन्दी की जेब अधिकतर खाली ही रही।
हिन्दी फिल्म जगत के जाने माने अभिनेता मानव कौल ने अपनी पहली किताब “ठीक तुम्हारे पीछे” के जरिये वही खाली जगह भरने का प्रंशनीय प्रयास किया है। बॉलीवुड में अपने सुगढ़ अभिनय के लिए चर्चित मानव कौल को आप शायद ‘काई पो छे’ के बिट्टू मामा या ‘वजीर’ के मंत्री जी के नाम से पहचान लें, हिन्दी फिल्म जगत में आप रुचि रखते हैं तो शायद आपने भारत पाक सैनिकों पर बनी 1971 भी देखी हो। अगर आप थियेटर जगत में रूचि रखते हैं तो मुम्किन है आपने इनके कई बहुचर्चित नाटकों से परिचित हों।
हाल ही में हिन्दी युग्म द्वारा प्रकाशित इनकी किताब ठीक तुम्हारे
पीछे कुल बारह कहानियों का संग्रह है। कहानी में पिरोया हुआ हर पात्र अलहदा, एक उम्मीद की डोर
थामे अपने अंतर्मन ने जूझता हुआ मिलता है।
मानव कहते हैं “मुझे कोरे पन्ने बहुत आकर्षित करते हैं। मैं कुछ देर कोरे पन्नों के सामने बैठता हूँ तो एक तरह का संवाद शूरू हो जाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे देर रात चाय बनाने की आदत में मैं हमेशा दो कप चाय बनाता हूँ एक प्याली चाय जो अकेलापन देती है वह मैं पंसद नहीं करता। दो प्याली चाय का अकेलापन असल में अकेलेपन के महोत्सव मनाने जैसा है” बात बहुत सादे शब्दों में कही गयी है लेकिन यकीन हो जाता हैं कि मानव कौल का लेखन परिपक्व है। लिखना कभी भी कठिन शब्दों का चुनाव भर करना नहीं होता उसके लिए तो शब्दकोश मौजूद है। लेखन खुद से चलकर कहानी के किरदार की आत्मा तक पहुँचना है। उस किरदार से एक अंदरूनी रिश्ता कायम करने जैसा है, जो इस किताब में बखूबी दिखता है। मानव कौल की कहानियाँ हमें उसी रूहानी सफर पर ले जाती हैं। उनका लिखा हुआ हम क़रीब से महसूस करते हैं। उनके पात्रों की उलझनों और उनकी खुशियों के बीच सफ़र करते हैं। कहानियाँ कई उम्र का सफर तय करती हैं। ये चुनाव करना मेरे लिए बहुत ही कठिन है की किस कहानी का कौन सा पात्र श्रेष्ठ है। “अभी-अभी से कभी-का तक” कहानी में मानव कौल कहते हैं “दर्शक बने रहना आसान नही है खासकर जब आपके पास खुद करने के लिए कुछ भी ना हो और आपके अगल बगल इतने बेहतरीन अभिनय कर रहे हो” एक ऐसा व्यक्ति जो हॉस्पिटल-बैड पर रात दिन अपने आने वाले कल को संशय से देखता है। उसे यकीन है कि वो उस किनारे नहीं लगेगा जहाँ ज़िंदगी सांसे छोड़ देती है, उबर जाएगा वो इस बीमारी से फिर भी रोज़ खुद को उसी ओर सरकता पाता है जो उसे बस एक याद बना देगा। “गुणा भाग” कहानी में लेखक कितना सधा हुआ लिखते हैं कि “इन तीन सालो में मैंने तुम्हें जितना जिया है और जितना तुमने मुझे याद किया है हम वो सब एक दूसरे को वापस दे देंगे और फिर हमारे सबंध में है के सारे निशान मिट जाएँगे” एक रिश्ते में होकर भी ना होना, वजह पता होते हुए भी ढूंढते रहना कि क्या पता कोई ऐसा सिरा मिल जाए जो रिश्ते को “है” से “था” ना होने दे”
इनके अलावा “मुमताज़ भाई पंतग वाले” और “माँ” इन दो कहानियों को पढ़ना किसी अलसायी सी दोपहर में नीम की ठंडी छाँव
में सुस्ताने जैसा है या ट्रेन के किसी स्टेशन पर रुकने पर बेचैन आँखो से कुल्हड़
वाली चाय का इंतजार करने जैसा। तपते रेगिस्तान में दो घूँट जिंदगी की तरह मिलने
जैसा भाव लिए मानव कौल का यह कहानी-संग्रह हिन्दी साहित्य जगत के पाठकों के लिए
सोच के नए द्वार खोलता है, पढ़ने के बाद भी देर तक हमारे अंदर इन कहानियों की गूँज रह जाती है।
अपनी बुकशेल्फ में इसे ज़रूर जगह दीजिएगा।
नोट: यह समीक्षा मूलत: गाँव कनेक्शन के लिए लिखी गयी है। आर्टीकल गाँव कनेक्शन की
वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है।
Story - Jo Yahin Rah Gaya - Qisson Ka Kona with Neelesh Misra (On Jio Saavn App)
Show Title : Qisson Ka Kona with Neelesh Misra
Story Title : Jo Yahin Rah Gaya
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