कुछ आवाज़ें आप सुनते है और आपको अच्छी
लगती हैं आप उन तक बार बार पहुंचने की कोशिश करते हैं। लेकिन कुछ आवाज़ें ऐसी भी
होती हैं, जो आपको छोड़ कर जाती ही
नहीं, एक बार कानों में पड़ गयी, और छोटी सी जगह बना ली अपने लिए, परमिशन भी नही
ली, बिना किराया दिए, बस आपके दिल-ओ-दिमाग में रहने लगती हैं जैसे जगजीत जी,
गुलज़ार साब की और नीलेश सर की आवाज़।
नीलेश सर को सुनते हुए पाँच साल से उपर हो
चुके हैं, कहानियों से पहले, उनका एक गीत सुना था “उनका ख्याल आते ही” और फिर ढेरों कहानियाँ। आवाज़ में इतना
वेरिएशन और कागज़ में लिपटे भावों को जीवित कर देना इतना आसान कहाँ होता है।
हिन्दी के नव रस में बामुश्किल ही कोई रस
होगा जो सर की आवाज से अछूता रहा हो, उनकी आवाज हंसाती है, रुलाती है और आज सुन्न
सा कर गयी। कोई कैसे इतनी खूबसूरती है हर किरदार निभा लेता है, या कहूँ अपनी आवाज़
का लिबास ओढ़ाकर हर किरदार को ज़िंदा कर देता है, साँस भर देता है कहानी में।
पिछले दिनों यादों की पहेली सुनी..
Directed By Bhuvan Singh
Directed By Bhuvan Singh
यादों की पहेली को कुछ इस तरह सुलझाओ
बूझों तो बूझ जाओ वरना भुलाते जाओ।
तुमने भुला दिया है इतना यकीन है पर
मैंने भुला दिया है... इसका यकीन दिलाओ।
और आज रेडियो मिर्ची पर सरहद से आज़ाद मंटो सेशन के चलते जब सर की आवाज़ में मंटो को सुना तो रोंगटे खड़े हो गए, सच कहूँ अगर
किताब में मंटो की यह कहानी “आखिरी सेल्यूट” पढती तो शायद पूरी नहीं पढ़ पाती, दंगो से
घिरा सच कहाँ निगल पाते हैं हम, लेकिन जब हर शब्द अगले शब्द के लिए उत्सुकता जगा
दे तो, आप बंध जाते है कहानी में। बेहद शुक्रिया सर, बेहद बेहद शुक्रिया।
P.s. – Gratitude.