Courtesy : Vivek Arya |
“बड़ा ही बत्तमीज़ बच्चा है”
—मैंने मन ही मन
सोचते हुए...अपनी शॉल पर बिखरी पानी की बूँदे झाड़ी। कबसे उसकी उलजूलूल हरकतों को
सह रही थी...ये बच्चा है कि शैतानियों का पुलिंदा...पता नहीं कैसे माँ-बाप ऐसे
खतरनाक हथियारों को साथ लेकर घूमते हैं...इन पॉकेट-बॉम्ब के टिकट आधे नहीं...दुगने
लगने चहिए।
अपना स्टेशन आने पर जैसे ही लगेज़ निकालने
के लिए झुकी...हाथ किसी रॉडनुमा चीज़ से टकरा गया...नज़र उस शैतान संता-क्लॉज़ के
पैरों पर गई। आँखों में ना जाने क्या चुभ-सा गया..एक नम लम्हे ने जैसे सब कुछ बदल
दिया...वो नन्हा-सा संता जैसे मेरे हर गुज़रते लम्हें को सज़ीव कर गया था।
- अंकिता चौहान [आज सिरहाने के लिए लिखी गई कहानी]