May 23, 2015

राजकुमार केसवानी : नौशाद साहब विशेष (अंश)


कभी-कभी सोचती हूँ, मेरा रविवार(Sunday) इतना खुशगवार ना होता अगर दैनिक भास्कर का रसरंग, (ऑल्मोस्ट साहित्य विशेषांक) पढ़ने को ना मिलता! थोड़ा सा मैं bias  हो जाऊं तो यकीन मानिए, राजकुमार केसवानी जी के क़ॉलम का हर हफ्ते बेसब्री से इंतज़ार करती हूँ, Sunday खत्म भी नहीं होने पाता कि उनके लिखे लफ्ज़ो की cutting मेरे छोटे से फॉल्डर में अपनी जगह तय कर लेती है।

Naushad Sahab (Photo Credit - Google)

नौशाद जी को कौन नहीं जानता, एक जाने-पहचाने music director  थे। जिनका बचपन लखनऊ में बीता। उनके संगीतबद्ध किए नगमे आज भी हमारे ज़हन पर छाए रहते हैं। आज पुरानी राहों से, अफसाना लिख रही हूँ, मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम, आज पुरानी राहों से, मधुबन में राधिका.. याद है?   

गत सप्ताह “नौशाद साहब विशेष” में केसवानी जी ने कुछ ऐसा किस्सा साझा किया, कि खुद को नहीं रोक सकी और अपनी इस छोटी सी दुनिया में आप सबके साथ केसवानी जी के कॉलम से लिया गया वही अंश share कर रही हूँ।

राजकुमार केसवानी जी : नौशाद साहब विशेष

Rajkumar Keswani Ji ( Photo Credit : Google)

जाते-जाते एक बड़ी नाजुक सी बात कह देना चाहता हूँ। कामयाबी के चांद-तारों जो छूने को मचलते इंसानो के लिए एक बात। दुनियावी कामयाबी कभी इतनी बड़ी कामयाबी नहीं बन पाई है के इंसानी रिश्तों और मोहब्ब्तों से बड़कर कामयाब हो सके। किशोर कुमार आखिरी दिनों में खंडवा लौटने को बैताब थे तो नौशाद साहब भी कम बैचेन नहीं थे। अपने उरूज़ के दौर में ही नौशाद ने अपनी नानी को एक खत लिखा था, जिसका लब्बो-लुबाब वही था कि “ ये दौलत भी ले लो य़े शौहरत भी ले लो..!

“आपका खत प्यार भरा मिला। पढ़कर सबकी बहुत ही याद आई। फिर एक बार बचपन आँखों के सामने घूम गया। खुदा आपको सलामत रखे। हमारी नानी का घर सलामत रहे। कई बार ऐसा ख्याल आता है कि एक बार सब बच्चों को लाऊँ और आपके पास ठहरूं और मस्ज़िद की छत से फिर पतंग उड़ाऊं और नानी की आवाज़ सुनूं कि- अरे कमबख्तों! मस्ज़िद की छत से उतरो गुनाह पड़ेगा। फिर वो तकिए वाले पीर साहब की मज़ार पर जाऊं। और वो हमारा.. इमली का पेड़, उससे लिपट्कर खूब जी भरकर रो लूँ।“