Photo Courtesy : Vivek Arya |
हर उस लफ़्ज़ को आयत
मानकर पड़ता,
जिस पर ठहर जाती थी
उंगली तेरी..
मेरी किताबों पर
पसरते तेरे साये में,
मेरी लेखनी पर
झाँकती तेरी मुस्कान में,
अपना सुनहरा भविष्य
देखा करता था मैं..
तेरी काँच की
रंग-बिरंगी चूड़ियों से
नाजाने कितने ही
सूरज बना डाले थे मैंने,
जिन्हे आकाश दिया था
तेरे ममत्व ने..
अब जब तू एक तस्वीर
में
सिमट कर रह गयी है,
तो..
तेरी यादों की पाकीज़गी
को,
मेरे उपर की गयी
तेरी कवाय़द को,
सफ़हा दर सफहा जमाने
की कोशिश करता हूँ...
तो मेरे एहसास
आँसू बन चूम लेते है
उस कागज़ को..
धुंधला पड़ता हर लफ्ज़,
यही कहता दिखता है
तू अब कुछ-कुछ माँ
जैसा लिखता है ..!!
- अंकिता चौहान