September 24, 2022

Pratinidhi Kahaniyan - Muktibodh and Ismat Chughtai

 

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पता नहीं क्यूँ मैं बहुत ईमानदारी की ज़िंदगी जीता हूँ, झूठ नहीं बोला करता, पर-स्त्री को नहीं देखता, रिश्वत नहीं लेता, भृष्टाचरी नहीं हूँ, दगा या फरेब नहीं करता, अलबत्ता कर्ज़ मुझपर जरूर है जिसे मैं चुका नहीं पाता। फिर भी कमाई की रकम कर्ज़ में जाती है। इस पर भी मैं यह सोचता हूँ कि मैं बुनियादी तौर से बेईमान हूँ। इसलिए, मैंने अपने को पुलिस की ज़बान में उठाईगिरा कहा। मैं लेखक हूँ। अब बताइए, आप क्या हैं?’

-    मुक्तिबोध, अपनी एक कहानी में

 

उनके देहान्त के बाद न जाने क्यों, मरने वाले की चीज़ें प्यारी हो गयीं। उनका एक-एक लफ़्ज़ चुभने लगा। और मैंने उम्र में पहली बार उनकी किताबें दिल लगाकर पढ़ीं। दिल लगा कर पढ़ने की भी खूब रही। गोया दिल लगाने की भी ज़रूरत थी। दिल आप-से-आप खिंचने लगा। ओफ़्फ़ोह! तो यह कुछ लिखा है इन मारी-मारी फिरने वाली किताबों में! एक-एक शब्द पर उनकी तस्वीर आँखों में खिंच जाती और पल भर में वो ग़म और दुख में डूबी हुई, मुस्कराने की कोशिश करती हुई आँखें, दुखभरी काली घटाओं की तरह मुरझाये हुए चेहरे पर पड़े हुए वो घने बाल, वो पीला नीलाहट लिये हुए ऊँचा माथा, उदास ऊदे होंठ, जिनके अन्दर समय से पहले तोड़े हुए असमतल दाँत और दुर्बल, सूखे-सूखे, औरतों-जैसे नाज़ुक, और दवाओं में बसी हुई लम्बी उँगलियों वाले हाथ। और फिर उन हाथों पर सूजन आ गयी थी। पतली-पतली खपच्ची-जैसी टाँगे, जिनके सिरे पर वरम से सूजे हुए भद्दे पैर, जिन्हें देखने से बचने के लिए हम लोग उनके सिरहाने की तरफ़ ही जाया करते थे और सूखे हुए पिंजर-जैसे सीने पर धौंकनी का सन्देह होता था। कलेजे पर हज़ारों कपड़ों, बनियानों की तहें और इस सीने में ऐसा फड़कता हुआ चुलबुला दिल! या अल्लाह, यह आदमी क्योंकर हँसता था। लगता था, कोई भूत है या जिन्न, जो हर ख़ुदाई ताक़त से कुश्ती लड़ रहा है। नहीं मानता, मुस्कराये जाता है। ज़ालिम और जाबिर ख़ुदा चढ़-चढ़ कर खाँसी और दमे की यन्त्रणा दे रहा है और यह दिल ठहाके लगाना नहीं छोड़ता। कौन सा दुनिया और दीन का दुख था, जो कुदरत ने बचा रखा था, फिर भी रुला न सकी। इस दुख में, जलन में हँसते ही नहीं, हँसाते रहना किसी इन्सान का काम नहीं। मामू कहते थे, ‘ज़िन्दा लाश।ख़ुदाया! अगर लाशें भी इस क़दर जानदार, बेचैन और फड़कने वाली होती हैं तो फिर दुनिया एक लाश क्यों नहीं बन जाती!

-    इस्मत चुगताई