टाईटल: एच. आर डायरीज़
लेखक: हरमिंंदर सिंह
पब्लिशर: ओपन क्रेयोंस, ब्लॉग अड्डा
विधा: उपन्यास
फ़ार्मेट: पेपरबैक
आई एस बी एन: 978352017782
पृष्ठ: 181
रेंटिग: 3/5
कभी कभी लगता है कि मै अनसुलझे सवालों को
खोजने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन हर बार ऐसा नही होता..
किताब की शूरूआत इन्हीं पक्तियों से होती
है, और अगले कुछ पष्ठों में लेखक एच. आर. डायरीज़ के अस्तित्व में आने के पीछे की
कहानी कहते हैं। नौकरी के पहले दिन की घटनाओं से शूरू होता ये उपन्यास कॉरपोरेट
वर्ड की जमीनी हकीकत बताने का प्रयास करता नजर आता है।
कहानी लेखक के पॉइंंट ऑफ व्यू से लिखी गयी
है लेकिन हर सतह पर नए किरदार जुड़ते है, और मानव संसाधन विभाग के उन केबिंस में
बीती उनकी ज़िंदगी से जुड़ी छोटी छोटी बातें हमारे समक्ष रखी जाती हैं। नौकरी के पहले
ही दिन किताब के मुख्य नायक की मुलाकात अपने सहकर्मियों से होती है, विजय, तारा, मधु
जिनके सपने उन्हें इस नौकरी तक खींच तो लाते हैं, लेकिन वो सब इस दौरान आने वाली
पेचीदिगियों में उलझ जाते है। उन्हें अपने अपने तरीकों से हल करने की कोशिश में
लगे हैं।
लेखक ने किताब को बेहद सरल भाषा में लिखकर
हर पाठकवर्ग तक पहुंचने की कोशिश की है। हाँलाकि किताब मानव संसाधन विभाग के
कर्मचारी से जुड़ी है लेकिन वो एक आम इंसान की कहानी लगती है। मुझे डायलागस कुछ
कमजोर लगे। वो और अच्छी तरह लिखे जा सकते थे। कहानी के बीच में लेखक ने कई ऐसे
गुरू मंत्र दिए हैं जो जिंदगी की उलझनों को दूर भले ना करे लेकिन उन्हें आसान जरूर
बना सकते हैं, हमारे सामने कौन सी परिस्थितियाँ आएंगी ये हमारे बस में नहीं होता
लेकिन उनसे हमें कैसे डील करना है, लेखक इस किताब के जरिए यही समझाने का प्रयास
करता है। ये किताब क्लासिक बिल्कुल नहीं है लेकिन इसे एक बार पढा जा सकता है।
किताब के कुछ अंश:
कुछ लोगो ने चाहा था कि वे जैसा चाहे कर
सकते हैं लेकिन जमीन उनके उतनी ही नजदीक है जितना दूर आसमान।
नौकरीपेशा लोगों के लिए घटों की अहमियत
है। वे दौड़ भाग मे जुटे हैं। सच यह भी है कि उनकी ज़िदंगी का एक हिस्सा उनसे हर बार
सवाल करता है कि यह दौड़ यूँ ही क्यूँ चल रही है।
मेरे ख्याल मे यह हर किसी की भूल होती है
कि नौकरी आसान होती है सरल होती है और कुर्सी पर बैठने के लिए होती है उन्हे मालूम
होना चहिए कि नौकरी जिम्मेदारी होती है समझदारी होती है और अपनी क्षमता को समझने
की प्रक्रिया है।
मैं उस अदृश्य घेरे से स्वंय को अलग रखे
हुआ था क्योंकि मैं जानता था कि कार्यस्थल और वहाँ काम करने वाले लोगो के साथ का
रिश्ता जरूर होता है और होना भी चाहिए। वास्तव में उस रिश्ते को भावनाओं से अलग
रखना बहुत अहम है।
लेखक के बारे में:
श्री हरमिंदर का यह पहला उपन्यास है | उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गजरौला
में रहते हैं | साहित्य से स्नातक है तथा मानव संसाधन की
पढ़ाई की है | कुछ साल नौकरी करने के नाद लेखन क्षेत्र
में आ गये | उन्हें लेखन के साथ चित्रकारी का शौक है | मौका मिलता है तो कवितायें भी लिखते हैं | उनका ब्लॉग ‘वृद्धग्राम’ वृद्धों को समर्पित पहला हिंदी ब्लॉग है | ब्लॉगअड्डा द्वारा वृद्धग्राम को साल २०१५
का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग का सम्मान मिल चुका है |
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